Friday 27 September 2013

मार अपनों की

   अलस्सुबह जग के बालकोनी पे निकली तो देखी अपार्टमेंट के लॉन में भीड़ लगी है ,औरत,मर्द,बच्चें ,सभी शामिल हैं ,शोरगुल हो रहा है,दिन का गार्ड भी खड़ा है ,आश्चर्यमिश्रित उत्सुकता सी मै  नीचे भागी । 
                     इतनी गर्मी में स्वेटर-शॉल पहने आकांक्षा बीच में बैठी है और हाथ हिला-हिला के कुछ बोले जा रही है,सभी फ्लैटवाले लोग उसे सुन रहें,कुछ मुंह छुपा हंस रहें हैं,बड़े आश्चर्य की बात की उस भीड़ में उसका पति या ससुराल का कोई सदस्य नहीं था ,मै  भीड़ का हिस्सा बनना नहीं चाही ,लौटते हुए रास्ते में मिसेजसिन्हा मिली ,बड़े हीं दुःख से बोलीं "देखीं जी इस बेचारी को इसके ससुरालवाले पागल करके ही छोड़ा "अच्छा लेकिन आकांक्षा तो मायके थी न ,कब आई ?"अरे क्या मायका ,वेलोग भी तो इसे भगवान भरोसें हीं छोड़ दिए हैं,६ -७ दिनों पहले आई है ,बच्चा पहले ही इससे छीन कर हटा दिया गया था,जानबुझकर इसे तनाव में रखा जाता है ,डिप्रेशन में थी ,परसों से ज्यादा संतुलन बिगड़ आया है "पलटकर देखी हाथ भांज-भांज कर अंग्रेजी में कुछ बोले जा रही आकांक्षा ,नहीं देखा गया तो हट गई वहाँ से,सीढ़ी पे नीलममेहरा  मिलीं "देखिये क्या मिला मिसेज राठी को इस बेचारी की दुनिया उजाड़ के?"एक नई वाकया मेरे सामने पसरी थी पर रुक के सुनने की इच्छा न हुई ,हताश आ सोफा पे पसर गई ,आँख आँसू से भर किरची सी चुभने लगी । ओह सुन्दरता की महत्वकांक्षा  इतनी ज्यादा होती है क्या ,की मिसेज राठी लोकलाज भूल आकांक्षा के पति को अपने में समेट इस लड़की को इतनी एकाकी कर गई जो आज ईस हालात में है ,आखिर वो एक औरत ही तो है ,उम्रदराज औरत ?
                      औरत की बेबसी पे व्यग्र हो ही रही थी की कम करनेवाली लड़की अंजू आ गई ,उसके लिए हर घटना नमक-मिर्च लगी एक मनोरंजक समाचार होती है ,बस वो आरम्भ हो गई "जानती हैं आंटी आकांक्षा दीदी पागल हो गई है ,उसका पति राठी आंटी से फंसा है,आकांक्षा दीदी अपने आँखों देख पकड़ ली,उसका हस्बैंड बोल की सब सह के रहना है तो रहो नहीं तो बच्चा लेके तुम्हे मायके भगा दूँगा ,दीदी ने पुलिस -महिला आयोग की धमकी दी तो उनलोगों ने क्या हल किया आकांक्षा दीदी का,वो बोलते जा रही थी ,मै  कुछ भी न सुन पा  रही थी ,सोचे जा रही थी की बेचारी आकांक्षा कितना उत्पीड़न सही होगी ,कितने तनाव में रही होगी ,कितना तड़पि होगी अपने बच्चे से अलग होके ,इस अंजाम तक पहुँचने में कितने दिन-रात जहालत के बिताये होंगे उसने ।    ३-४ साल ही तो गुजरे हैं ,आकांक्षा शादी हो के आई थी ,स्मार्ट-सुघड़,बहुत सुन्दर नहीं पर बेहद प्यारी और अच्छी । उसका हमेशा खिलखिल के हँसना ,धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलना सभी को प्रभावित करता था ,अपने तहजीब-तरीके से वो सबकी चहेती हो गई थी ,सबको मदद करना,आत्मविश्वास से लबरेज रहना,सभी मुग्ध रहते थे ,पति ठेकेदारी करता था और इतना सुन्दर था की देखते आँखे न थकती थी ,इतनी प्यारी और अपनी सी जोड़ी लगती थी दोनों की । दिन यूँही गुजरते जा रहे थें ,आकांक्षा एक बेटे की माँ बनी,फिर उडी-उडी ख़बरें आने लगी की आकांक्षा के पति का बगल के फ्लैट की मिसेज राठी के साथ अनैतिक संबंध हो गए हैं ,दोनों पति-पत्नी के बीच झंझट चल रहा है । आश्चर्य हुआ की इतनी सुघड़-सलीकेदार बीबी के होते हुए वो फिसला कैसे?उसी समय मै बेटा  के पास हैदराबाद चली गई थी ,आकांक्षा अपने मम्मी-पापा के यहाँ  गई थी । 
                     मर्द अपने विरुद्ध जाने पे ऐसे ही सजा का प्रावधान करते हैं… मौत से बदतर जिन्दगी ,हमेशा  तनाव में रखना,कमजोर नस को दाबे रखना  या काट डालना ,औरत किसी के सहारे उबड़ पाई  तो ठीक नहीं तो ?/ओह भगवान क्यूँ आकांक्षा को इतना टैलेंट दिये ,मूर्ख रहती तो कुछ न समझती ,सुखी रहती तो ।   मर्द अकेला कहाँ दोषी है ,उसके साथ एक औरत भी तो रहती है,घर या बाहर  की ,औरत के विरुद्ध एक औरत ही तो खड़ी रहती है। वासना का ज्वार  उतरने पे ही सही मिसेज राठी रास्ते  से हट सकती थी ,आकांक्षा की सास बेटे को समझा सकती थी । आत्मसम्मान या अधिकार के साथ जीना क्या नारी के किस्मत में नहीं?इस आधुनिक समाज में आकांक्षा जैसा मामला सभी के सामने है,आकांक्षा का अंत … आकर्मक नहीं है तो घर का काम  करेगी नहीं तो पागल का ठप्पा तो लग ही गया ,बीच में उसे अहसास दिलवाने शायद मेंटल हॉस्पिटल भी भेजा जाय । 
                   सच पुछिये तो ये कहानी नहीं है ,मै प्रत्यक्ष गवाह हूँ ,इसे कहानी के ताने-बाने में बुन भी न पाई हूँ । ऐसी घटनाओं को हम औरतें या तो अपनी नियति मान या दूसरी औरतों पे दोष गढ़ के शान्त हो जाती हैं । जुझने का जज्बा तो बचपन में ही छीन लिया जाता है ,कायरता को शर्म का नाम दे गहना बना पहना दिया जाता है । 

Tuesday 10 September 2013

स्त्री क्या है

  भगवान की सृष्टि की एक़ अदभुत,
  उत्कृष्ट,प्यारी इंद्रधनुषी संरचना,
  भगवान ने फुर्सत में अपने हाथों रचा,
  कोमल शरीर ,दया से लबालब ह्रदय,
  उसके सर विधाता ने पहना दिया,
  एक़ अदृश्य ताज,
  उसे ओढ़ाया सहनशीलता,करुणा,
  सजाया रंगबिरंगी वस्त्रों से,
  पर उसे किस्मत देते समय,
  धोखा खा गये भगवान,
  उसे छाँव-सहारा दे दिया,
  पुरुष के अत्याचारों का,
  विविध रंगों में,अनेक ढंगों से,
  घर-दुनिया -खुद में ,एक़ स्त्री,
  सामंजस्य बैठाती भागती रहती है,
  हर कदम जिन्दगी में सभी को,
  खुश रखने का प्रयास करती हुई,
  अपनी जिन्दगी अपनी ही नहीं रह जाती,
  उसका भविष्य उससे लुकता-छिपता है,
  भयावह,स्याह,उलझा लगता है,
  उसके अपने अस्तित्व के विरुद्ध पुरुष है,
  जो उसका अपना अंश है ,दिल के धागों से गुंथे हैं,
  पिता-भाई-पति-पुत्र है--------
  उनके कुकर्म को भी वो नज़रंदाज़ करेगी,
  उनकी पीठ थपथपायेगी,
  उन्हें उत्साहित,ताकतवर करेगी,
  अनजाने में ही सही,
  अपने विरुद्ध अपनों को खड़ा करेगी। .