हैदराबाद में जब मेरे पुत्र कि बड़ी दुर्घटना हुई थी,मैं उससमय राँची में बैठी हुई विकल-विह्वल हो रही थी। अस्पष्ट-धुंधला सा कुछ दर्शित था,मेरी आँखों से अनवरत आँसु बह रहे थे।बाहें फैला सारे ब्रह्मांड,भगवान और पितरों से उससमय मैं गुहार लगाई थी। उसी छण को शब्दों में गुनने कि कोशिश कि हूँ। शायद मेरी विह्वलता-परेशानी को आप भी महसुस कर पायें।
वक़्त क्यूँ अपनी गति भूले हो,
क्यूँ सहमे-मुर्झाये से रुके हो,
न कुछ निशान दिखा रहे,
न मुझसे आँख मिला रहे,
आतुर हूँ,दहल रही हूँ मैं,
विह्वलता उदाग्र हो रही,
ये कैसा अँधेरा छाता जा रहा,
कहाँ क्या घटित हो रहा,
क्या विघटन हो रहा,
कौन सा डोर कट रहा,
भय का वातावरण यूँ सृजित हो रहा ,
मानो सबकुछ मटियामेट होने वाला,
सारी सृष्टि मूक बनी निहार रही,
काल के गर्भ से क्या प्रस्फुदित हो रहा,
हे चक्र गति ,तू अबाध,निश्चल हो,
अमोघ तुम्हारी हर चाल है,
ब्रह्मांड के होठों पे तूने,
कौन सा गीत सजाया है,
कर्कश,कठोर,विनाशकारी शब्द,
क्यूँ गूंज रहे ????
ॐ की कालजई,पवित्र ध्वनि कहाँ खो गई है,
मेरे पूजित ,मन मंदिर में विराजे देवता,
आकाश-पृथ्वी,ईश्वरीय-सृष्टि,
मेरे कुल के पितर,मेरे पूज्य,
सभी अपने आशीर्वाद का आवरण ओढ़ा,
मुझे भयमुक्त कर,
मेरे इर्द-गिर्द रेखा खींच,
मेरी छोटी सी दुनिया सुरक्षित कर,
मेरे ह्रदय में बहते प्यार के स्रोत्र को,
तू सूखने मत दे,
मैं बाँहें फैला आह्वान कर रही,
तू मुखरित हो जा,जग जा तू,
काल को समझा ले तू,
सबकुछ सम्भाल ले तू,
नतमस्तक हूँ,शरण में हूँ मैं,
मेरी प्रार्थना की लाज़ रख ले तू,
अपनी गति कायम कर तू,
मुझे निजात दे,मेरी निजता दे दे तू,
समय के सीने में ,तेरा दिया वरदान,
संचित रहेगा युगों तक।