पलक भींचे,मुट्ठी बाँधे,
जब आई मैं इस दुनिया में,
तेरे स्नेहिल छाया ने ढौर दिया मुझे,
तेरे ममता के स्पर्श ने,
सहलाया मुझे,
पग-पग ठोकर खाती,
दौड़ती-ठिठकती मैं,
तू सहारा देती, हुँकार भरती,
आगे-आगे ठेलती रही मुझे,
एक पुलक सी भरी मैं,
दुनिया की भीड़ में खोती गई,
तू मेरे हर निशान को संजोते रही,
हर पल,हर डगर की,
तू पहचान मेरी,
मेरी राही,मेरी सहचर,
सब तू हीं रही,
मैं अनजान अबोध,
न तुझे पहचान सकी,
हाय!कैसी ये है बिडम्बना,
तेरे प्रेमायुक्त आलिंगन को तरसती रही,
तुझे जो नाम दिया जग ने,
उससे डरते रही,भागते रही,
पर हे शाश्वत सत्य,
तू तो अटल है,
तू ही तो जीवन पर्यन्त साथ देते रही,
बाँहे पसारे तू खड़ी है सामने,
कैसा बंधन,अब कैसी बाधा,
हे मौत! मेरी पथदर्शक,
जब आई मैं इस दुनिया में,
तेरे स्नेहिल छाया ने ढौर दिया मुझे,
तेरे ममता के स्पर्श ने,
सहलाया मुझे,
पग-पग ठोकर खाती,
दौड़ती-ठिठकती मैं,
तू सहारा देती, हुँकार भरती,
आगे-आगे ठेलती रही मुझे,
एक पुलक सी भरी मैं,
दुनिया की भीड़ में खोती गई,
तू मेरे हर निशान को संजोते रही,
हर पल,हर डगर की,
तू पहचान मेरी,
मेरी राही,मेरी सहचर,
सब तू हीं रही,
मैं अनजान अबोध,
न तुझे पहचान सकी,
हाय!कैसी ये है बिडम्बना,
तेरे प्रेमायुक्त आलिंगन को तरसती रही,
तुझे जो नाम दिया जग ने,
उससे डरते रही,भागते रही,
पर हे शाश्वत सत्य,
तू तो अटल है,
तू ही तो जीवन पर्यन्त साथ देते रही,
बाँहे पसारे तू खड़ी है सामने,
कैसा बंधन,अब कैसी बाधा,
हे मौत! मेरी पथदर्शक,