मैं खामोश अंग बनी बैठी कायनात की,
ये जंगल,झील,हरियाली,सुरमयता,
तुम कब गए थे उसपार,
मैं सोचते रहती हूँ,
क्या तुम्हे याद है वो तिथि,
तो क्यूँ न फिर आ रहे,
हर सुबह आस जगाती,
दिन इन्तजार में जाती,
शाम अवसाद लेके आती,
रात आँसुओं में भिंगोती,
झील के इसपार हद है हमारी,
तुम्हारी हद ,कहाँ शुरू कहाँ खत्म,
उसपार है सबकुछ,
तुम जो हो ,
इसपार मेरा प्यार,मेरी तन्हाई,
और हद में समोई मैं।
दिल को छूते लाज़वाब अहसास...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति। नववर्ष की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति।
ReplyDelete