तेरी हर यादों को,
बायें हाथ की,
मुठ्ठी में बांधे हूँ,
फिर तेरी याद मुझसे,
क्यूँ जूझ रही है,
सारी उंगलियां तनतना रही है,
दीपावली आनेवाली है न,
हर उत्सव को बहाना बना,
तुम क्यूँ याद आने की,
कोशिश करते रहते हो,
दीये की झिलमिलाती लौ में,
तुम जब मुस्कुराते हो,
कभी सोचा .......
मैं कितनी मायूस हो जाती हूँ,
बिखरती-बिसूरती,तुम्हारी यादों मे,
मुठ्ठी कसमसाती है,
क्यूँ भला आज़ाद करूँ ?
तुम्हारी यादों को,
जो एक पल में ही,
मेरे सारे वजूद को,
आँसुओं में भिंगो जाता है।
हर उत्सव को बहाना बना, तुम क्यूँ याद आने की, कोशिश करते रहते हो - शिकायत करने के अन्दाज़ की कल्पना स्वाभाविक है। याद आपको आती है और बहाना उत्सवों का, बहुत खूब । बधाईयाँ ।
ReplyDeleteहर उत्सव को बहाना बना, तुम क्यूँ याद आने की, कोशिश करते रहते हो - शिकायत करने के अन्दाज़ की कल्पना स्वाभाविक है। याद आपको आती है और बहाना उत्सवों का, बहुत खूब । बधाईयाँ ।
ReplyDeleteक्यूँ भला आज़ाद करूँ ?तुम्हारी यादों को, बहुत सुन्दर विरह की अनुभूति और प्रेम की आसक्ति का सुन्दर सम्मिश्रण , आपके कवित्त में शब्द बोलते है। सुन्दर रचना अपर्णा जी
ReplyDeletegood !!
ReplyDeletewaah sunder bhaw abhiwyakti.
ReplyDeletePRIYATAM KEE YAAD KOI NA KOI BAHANA KHOJ HI LETEE HAI. YAADO KI RUMANIYAT.
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