जन्म-मरण के चक्र निरंतर सुख-दुःख कि अनवरत कड़ी,
रोग-व्यथा की रेखाओं पर चली सनातन काल घडी।
रोग-जीव की नश्वरता का बड़ा चतुर व्यापारी,
मृत्यु गीत के व्यापक स्वर का सर्व सुलभ संचारी।
रोग जीव के मोह भ्रमण का एक विराम स्थल है,
काया की कुंठित शक्ति के लिये एक सम्बल है।
भोग प्रकृति का स्वर्ण हिरन उन्मुक्त विचरता काम गली में,
जो दिवा स्वप्न में भ्रमित भ्रमर फँस जाते मृत्यु कलि में।
भोग मनुज के अंतरमन की ज्वाला शमन नहीं कर पाता,
उसकी दैहिक भूख निरंतर द्विगुणित ही करता जाता।
भोग जहाँ है ,शांति नहीं है ,रोग वहाँ अनुयायी,
जितना सुखकर जो पदार्थ है उतना ही दुखदाई।
योग आत्म चिंतन की आभा अंतर्मन का भेदी,
काल कर्म के सागर तट पर प्यासा रहे विवेकी।
योग ब्रह्म के ज्ञानमन्त्र का सागर अगम अथाह,
भव सागर के गहन तिमिर में जीव खोजता राह।
योग राग वैराग्य मार्ग पर समदर्शी संयम से जाता,
धर्म-अर्थ से काम मोक्ष तक द्वार स्वतः खुल जाता।
रोग-व्यथा की रेखाओं पर चली सनातन काल घडी।
रोग-जीव की नश्वरता का बड़ा चतुर व्यापारी,
मृत्यु गीत के व्यापक स्वर का सर्व सुलभ संचारी।
रोग जीव के मोह भ्रमण का एक विराम स्थल है,
काया की कुंठित शक्ति के लिये एक सम्बल है।
भोग प्रकृति का स्वर्ण हिरन उन्मुक्त विचरता काम गली में,
जो दिवा स्वप्न में भ्रमित भ्रमर फँस जाते मृत्यु कलि में।
भोग मनुज के अंतरमन की ज्वाला शमन नहीं कर पाता,
उसकी दैहिक भूख निरंतर द्विगुणित ही करता जाता।
भोग जहाँ है ,शांति नहीं है ,रोग वहाँ अनुयायी,
जितना सुखकर जो पदार्थ है उतना ही दुखदाई।
योग आत्म चिंतन की आभा अंतर्मन का भेदी,
काल कर्म के सागर तट पर प्यासा रहे विवेकी।
योग ब्रह्म के ज्ञानमन्त्र का सागर अगम अथाह,
भव सागर के गहन तिमिर में जीव खोजता राह।
योग राग वैराग्य मार्ग पर समदर्शी संयम से जाता,
धर्म-अर्थ से काम मोक्ष तक द्वार स्वतः खुल जाता।