भगवान ने दो जाति बनाया ...एक शारीरिक रूप से सबल और दुसरे को निर्बल ...तो समाज -परिवार का ढांचा और परिवेश भी उसके अनुरूप ही बना था .देश की गुलामी के लम्बे दौर मे पुरुष स्त्रियों को संरक्षण देते-देते अपनी शक्ति को हथियार बना लिए फिर तो वे शोषक और शासक बन बैठें .यानि कि एक पुरुष से संरक्षण देना दूसरे पुरुष का काम हो चला ,वो ब्रह्मा-विष्णु -महेश की भूमिका का निर्वाह करने लगा .स्त्रियाँ घर की इज्जत बन परदे के पीछे छुप गई ..
स्त्रियाँ किसी भी तबके की हों वो शोषित है ,बस अंतर इतना है की मध्यम वर्ग की औरतें इज्जत के आवरण में अपने को समोय रहती है जबकि निचले तबके की मेहनतकश औरतें इज्जत के अलग अर्थ को अमल में लाती हैं ....ये इतनी सबल होती हैं कि सलाम करने को जी चाहता है .कितनी सहजता से बचपनसे बुढ़ापा तक का सफ़र यूँ गुजर देती हैं मानो किसी के सहारे की आरजू ही नहीं .पति के निकम्मेपन,शराबीपन और अत्याचार को ये किस्मत का नाम देकर चिंतामुक्त हो जाया करते हैं ,औरत होने का दर्द सहती हैं,मार खाती हैं पर घायल सिर्फ शारीर होता है मन नहीं ...... पूरे शरीर पे चोट का निशान,माथा फटा,खून बहता हुआ,तीन छोटे बच्चों को लिए गेट पर पिटती नेहा को देख मै विह्वल हो गई ,क्या हुआ "मेमसाहेब कुछ पैसा दे दीजिये मै खाली हाथ घर छोड़ आए हूँ,रात सामने के गराज में सोई हूँ,"ठंड अभी भी कायम है तो कैसे ये रही होगी .उसके हौसले को मैं देखने लगी और उसकी सहारा बन उसके साथ खड़ी हो गई ."जानती हैं मेमसाहेब माँ-बाप छोटी उम्र में शादी कर दिया, सास बहुत ख़राब बर्ताव मेरे साथ करती थी,तीनो बच्चे जल्दी ही हो गए ...उसके बाद पति को किसी तरह फुसलाकर यहाँ लेके आई,ये अच्छा कमाता था पर इसके माँ-बाप यहाँ आके रहने लगे ,सास के बहकावे में आ मेरा मरद दारू पीने लगा,मै खूब लडती थी,चिल्लाती थी ,मुझे मारता था …आज चिल्लाके लड़ रही थी तो पीछे से माथा पे लाठी मारा " उसे हर तरह का सहायता दे प्यार से समझाई कि क्यों अपना घर छोडोगी ,जीत तो तब होगी जब उन तीनो को घर से भगाओ ,इतने घर काम कर उन सबों को खिलाती थी न तो अपना और बच्चों का पेट कैसे न भर पाओगी ? .....फिर उसे थाना भेज शिकायत दर्ज करवा दी,,पति जेल गया फिर जमानत पे छूट अपने माँ-बाप को लेकर अलग रह रहा है .इसे साथ रखने को लेकर कभी पंचायत कर रहा,कभी झगडा . नहीं जानती आगे क्या होगा पर परिवर्तन की हवा तो चल ही पड़ी है ........ हर तरफ कहानियां बिखरी पड़ी है, हर एक औरत की एक कहानी है .मेरी-आपकी-सबकी ..औरत एक जाति विशेष है सिर्फ ......जिसने दिमाग का प्रदर्शन किया उसे पग-पग पर लक्षण लगाये जाते हैं .........इन आपबीतियों को,भोगों को कहानियों में ढालने की कितनो को हिम्मत है और गर हिम्मत है तो कितने लिखने की कला के ज्ञाता हैं............??????
आज इस कहानी के आगे की कड़ी भी जुड़ गई है ,उसका पति जेल गया ,उसके सास-ससुर जमीन के कागज सौंप जमानत करवा आये ,फिर से उसका पति मजबूत बन उससे मारपीट करने लगा ,मार खाती औरत ..पर न सहमी न हारी .मुझे गर्व हुआ उसपे ,मै उसे हमेशा अहसास करवाती रही की तुम खुद कमाती हो ,बच्चें पालती हो तो क्यों मार खाती हो ?उसे बताओ की तुम उसके बिना भी खड़ी हो ,बड़ी मासूमियत से बोली .."मेमसाहेब देह्साथ की इच्छा होती है न ,फिर मर्द का साया भी जरुरी है ,सच कहूँ तो इस हकीकत को आत्मसात करने में मै आसमां से धरातल पर पहुँच गई ,हम मध्यवर्गीय क्लास के लोग कितनी आसानी से हर इच्छा को दमित कर लेते हैं ,खैर मै उसे आर कदम पर साथ देते गई और राह बताते गई ..
एकदिन फिर हाथ फुला हुआ ,कान के पास कटा हुआ लेके पहुंची ,इसबार उसे महिला थाना भेजी ,२-४ दिनों तक तो उसका पति भागा ,फिर पकडाया ,फिर जमानत ..लेकिन अब पति और सास-ससुर डरे हैं की ये दब नहीं रही ,पंचायत भी बैठा ....एक पुरुष के सामानांतर दुसरे पुरुष को ही लाना होगा ताकि उसके दंभ को चोट लगे ..हम स्त्री बच्चों को अपनी मिलकियत समझ कमजोर पड़ जाते हैं की वो छीन न ले ,कोई चोट ना पहुचायें ..
गौर कीजिये तो ये मेरी-आपकी ,सबकी कहानी है ..इस भावनात्मक कमजोरी को ही पुरुष अपनी शक्ति बना लेता है .लड़ाई तो अभी सदिओ तक चलेगी तभी कुछ परिवर्तन संभव है .कुछ हुआ,कुछ अभी बाकि ..............
मेरी ये कहानी आज पूरी हुई ..वैसे सच पूछिए तो ये न कहानी है न ही मै इसे गुन पाई हूँ ..मेहनतकश लोग जो इतने आभाव में रहते हैं फिर भी इतनी सुघड़ता से जिन्दगी का ताना -बाना बुनते हैं की इसपे अनवरत कलम चलाई जा सकती है ,पर पुरुष तो पुरुष ही होता है ..दंभ -बल से भरपूर शासकवर्ग ..............
स्त्रियाँ किसी भी तबके की हों वो शोषित है ,बस अंतर इतना है की मध्यम वर्ग की औरतें इज्जत के आवरण में अपने को समोय रहती है जबकि निचले तबके की मेहनतकश औरतें इज्जत के अलग अर्थ को अमल में लाती हैं ....ये इतनी सबल होती हैं कि सलाम करने को जी चाहता है .कितनी सहजता से बचपनसे बुढ़ापा तक का सफ़र यूँ गुजर देती हैं मानो किसी के सहारे की आरजू ही नहीं .पति के निकम्मेपन,शराबीपन और अत्याचार को ये किस्मत का नाम देकर चिंतामुक्त हो जाया करते हैं ,औरत होने का दर्द सहती हैं,मार खाती हैं पर घायल सिर्फ शारीर होता है मन नहीं ...... पूरे शरीर पे चोट का निशान,माथा फटा,खून बहता हुआ,तीन छोटे बच्चों को लिए गेट पर पिटती नेहा को देख मै विह्वल हो गई ,क्या हुआ "मेमसाहेब कुछ पैसा दे दीजिये मै खाली हाथ घर छोड़ आए हूँ,रात सामने के गराज में सोई हूँ,"ठंड अभी भी कायम है तो कैसे ये रही होगी .उसके हौसले को मैं देखने लगी और उसकी सहारा बन उसके साथ खड़ी हो गई ."जानती हैं मेमसाहेब माँ-बाप छोटी उम्र में शादी कर दिया, सास बहुत ख़राब बर्ताव मेरे साथ करती थी,तीनो बच्चे जल्दी ही हो गए ...उसके बाद पति को किसी तरह फुसलाकर यहाँ लेके आई,ये अच्छा कमाता था पर इसके माँ-बाप यहाँ आके रहने लगे ,सास के बहकावे में आ मेरा मरद दारू पीने लगा,मै खूब लडती थी,चिल्लाती थी ,मुझे मारता था …आज चिल्लाके लड़ रही थी तो पीछे से माथा पे लाठी मारा " उसे हर तरह का सहायता दे प्यार से समझाई कि क्यों अपना घर छोडोगी ,जीत तो तब होगी जब उन तीनो को घर से भगाओ ,इतने घर काम कर उन सबों को खिलाती थी न तो अपना और बच्चों का पेट कैसे न भर पाओगी ? .....फिर उसे थाना भेज शिकायत दर्ज करवा दी,,पति जेल गया फिर जमानत पे छूट अपने माँ-बाप को लेकर अलग रह रहा है .इसे साथ रखने को लेकर कभी पंचायत कर रहा,कभी झगडा . नहीं जानती आगे क्या होगा पर परिवर्तन की हवा तो चल ही पड़ी है ........ हर तरफ कहानियां बिखरी पड़ी है, हर एक औरत की एक कहानी है .मेरी-आपकी-सबकी ..औरत एक जाति विशेष है सिर्फ ......जिसने दिमाग का प्रदर्शन किया उसे पग-पग पर लक्षण लगाये जाते हैं .........इन आपबीतियों को,भोगों को कहानियों में ढालने की कितनो को हिम्मत है और गर हिम्मत है तो कितने लिखने की कला के ज्ञाता हैं............??????
आज इस कहानी के आगे की कड़ी भी जुड़ गई है ,उसका पति जेल गया ,उसके सास-ससुर जमीन के कागज सौंप जमानत करवा आये ,फिर से उसका पति मजबूत बन उससे मारपीट करने लगा ,मार खाती औरत ..पर न सहमी न हारी .मुझे गर्व हुआ उसपे ,मै उसे हमेशा अहसास करवाती रही की तुम खुद कमाती हो ,बच्चें पालती हो तो क्यों मार खाती हो ?उसे बताओ की तुम उसके बिना भी खड़ी हो ,बड़ी मासूमियत से बोली .."मेमसाहेब देह्साथ की इच्छा होती है न ,फिर मर्द का साया भी जरुरी है ,सच कहूँ तो इस हकीकत को आत्मसात करने में मै आसमां से धरातल पर पहुँच गई ,हम मध्यवर्गीय क्लास के लोग कितनी आसानी से हर इच्छा को दमित कर लेते हैं ,खैर मै उसे आर कदम पर साथ देते गई और राह बताते गई ..
एकदिन फिर हाथ फुला हुआ ,कान के पास कटा हुआ लेके पहुंची ,इसबार उसे महिला थाना भेजी ,२-४ दिनों तक तो उसका पति भागा ,फिर पकडाया ,फिर जमानत ..लेकिन अब पति और सास-ससुर डरे हैं की ये दब नहीं रही ,पंचायत भी बैठा ....एक पुरुष के सामानांतर दुसरे पुरुष को ही लाना होगा ताकि उसके दंभ को चोट लगे ..हम स्त्री बच्चों को अपनी मिलकियत समझ कमजोर पड़ जाते हैं की वो छीन न ले ,कोई चोट ना पहुचायें ..
गौर कीजिये तो ये मेरी-आपकी ,सबकी कहानी है ..इस भावनात्मक कमजोरी को ही पुरुष अपनी शक्ति बना लेता है .लड़ाई तो अभी सदिओ तक चलेगी तभी कुछ परिवर्तन संभव है .कुछ हुआ,कुछ अभी बाकि ..............
मेरी ये कहानी आज पूरी हुई ..वैसे सच पूछिए तो ये न कहानी है न ही मै इसे गुन पाई हूँ ..मेहनतकश लोग जो इतने आभाव में रहते हैं फिर भी इतनी सुघड़ता से जिन्दगी का ताना -बाना बुनते हैं की इसपे अनवरत कलम चलाई जा सकती है ,पर पुरुष तो पुरुष ही होता है ..दंभ -बल से भरपूर शासकवर्ग ..............
इस कहानी मेँ सत्य है और केवल सत्य है परंतु आपने पुरुष वर्ग की कहानी नही सुनी क्योंकि वह अपने दम्भ के कारण लिख्ते नहीँ। हरेक औरत की बात नहीँ कर रहा पर कुछ औरतोँ के कारण पुरुष का जीवन नरक हो गया है। पुरुष की बदमाशी(यही शब्द सही है) छिप जाती है मगर औरत की सारे परिवार मायका/ससुराल को मुहँ दिखाने लायक नही छोड्ती है। बच्चे बिगड जाते हैँ। पुरुष का एक जन्म खराब हो जाता है। पुरुषोँ के बिगड गये परिवारोँ की कहानी कौन लिखेगा। पुरुषोँ का दम्भ और महिलाओँ पर ज्याद्ती सब देख्ते हैण पर किसी ने उनसे पूछा है उनका दर्द जिन्होने अप्ना परिवार बसाने को शादी की थी और परिवार बिगड गया। क्ष्मा याचना सहित ।
ReplyDeletejaisa ki mai boli,ye rubru ghatna hai,purush ki kahani bhi hai par,matra me kam,mai meanatkashon pe likhi,yaha kamobesh sabhi kahaniyan saman hain....
Deleteishe padh ke aisa kahi na kahi mehsus hua ki aurat hi ek aurat ka dard baat sakti hai (jaise ki aap) aur ek aurat hi ek aurat ka dard badha sakti hai (jaise ki ush aurat ki mother-in-law ne kia)..mentality me sudhar na sirf mardo ko chahiye, infact aurto ko bhi chahiye..aurat hi kisi ladke ko janam deti hai aur ushe aurto ki respect karna agar bachpan se sikhaya jaye toh shayad ye samaaj ko sudharne me aashani hogi..
ReplyDeleteTum sahi ho salabh..dono paksh sabon me prabal hote hain,bachpan se hi uchit siksha milni chahiye...mai shayad kuch arthon me amal karti hun....thnx..
Deleteऔरत की कहानी ..सच्चाई बयां करती कहानी ..
ReplyDeleteaap Suman ji yaa tak aae,bahut dhanybad aapko..
Deleteहमारा सामाजिक और पारिवारिक ढांचा ही कुछ ऐसा है कि एक पत्नी हर हाल में घर-गृहस्थी और बच्चो के देखभाल लिए उत्तरदायी होती है,इसी क्रम में वो अपनी बाकि भूमिकाओ के प्रति उदासीन भी हो जाती है.विवाह के साथ ही उसकी कर्तव्यों के फेहरिस्त लम्बी होती जाती है और अधिकारों कि छोटी.त्याग और क़ुरबानी अपने सपनो का, एक स्त्री ही देती है,अपने पति कि सफलता कि khatir कई बार पत्नी भूल जाती है कि उसके भी कुछ अरमान थे.हर जोड़ा ,दूसरे से भिन्न होता है,चाहे वो किसी भी तबके का हो. कहीं किसी का पलड़ा भारी तो कही किसी में कोई कमी.हाँ,असामनता तो प्रत्यक्ष होता है.
ReplyDeletesahi hain ji,kisi n kisi ka palda to bhari rahega hi....kurwani,tyag auraton ke hisse me hi aata hai....thnx..
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ReplyDeletedekhte hain.....
Deletehakeekat bayan karti achchhi kahani ..
ReplyDeletethnx ji.....Kavita ji....
Deleteसच के बहुत करीब है ये कहानी ... अधिकाँश समाज की कहानी है ये ..
ReplyDeleteye sach hi hai Digmbar Naswa ji....maine shabdon ka jama pahnaya....
Deletebehtreen kahani....
ReplyDeletethnx Sushma.....
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