किशोर होते बच्चे,जवान हो चुके बच्चे सभी में आत्महत्या की प्रवृति काफी बढ़ गई है। रोज़ के हिसाब से बच्चे छोटी-छोटी बात पे अपने जीवन का अंत कर रहे हैं ,बड़े शिक्षा-संस्थान,बड़े शहर,छोटे जगह ,कहीं भी अछूता नहीं है। इतने युवा हैं देश में,इतना हो-हल्ला है पर सब उथला है। निर्जीव को सजाने और लोगों को तन्हा करनेवाली सोच अपना रहे हैं हम।मनीप्लांट ऐसी लचीली सोच है की कहीं भी उग जाओ पर बरगदवाली छाँव कहाँ मयस्सर होती है।सच तो है जुड़ाव तो तभी मजबूत होगा जब जड़ें गहरी हो,आज के जैसे हालात हैं--युवाओं में उमंग है तो तनाव और आक्रोश भी है ,कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो अपने एकाकीपन का भान भी है,जो तन्हाई-तनाव-तकलीफ से न जूझ पातें और कायरतापूर्ण कदम उठा लेते हैं उन्ही पे लिखी ये चंद पंक्तियाँ हैं---मै २ घटनायों को बहुत समीप से देखि हूँ--मन व्यथित हो जाता है।ये जिन्दगी क्या इतनी बेअर्थ है की निराश होने पे ही सही इसका अंत कर लिया जाय ,प्रेम में असफल होने या मम्मी-पापा के विरोध पर भी ये घृणित कार्य होते हैं,किस जूनून,किस जज्बे से ये उनका पालन-पोषण करते हैं वे क्यूँ भूल जाते ?
अंधेरों में कंदील जला के तो सोचो ,
जंगल में जुगनुओं की तरह टिमटिमा के तो देखो,
पूरी जिन्दगी अपनी जी के तो देखो,
बस एक बार ----एक बार तो सोचो,
इस पार की दुनिया में सब कुछ है,
रौशनी कम ही सही ,पर नज़र जाने तक तो है,
हिम्मत जुटा ,कदम बढ़ा कर के तो देखो,
उसपार न जाने क्या होगा ??
ना देखी दुनिया की क्यूँ सोचें,
मधुर घंटी बजाती ,सुकून देती शान्ति की दुनिया,
ये कोरी भ्रम की सुनी हुई बातें हैं,
उम्मीद भरी ,उजास से ख़िली हुई,
एक पूरी दुनिया तुम्हारे सामने पसरी है,
अँधेरी राहों में दिल का दीपक जला के तो देखो,
वीरान पड़े दिल में प्यार बसा के तो देखो,
बस एक बार----एक बार तो सोचों,
समाज मुंह जोह रहा ,परिवार उम्मीदें संजो रहा,
माँ की ममता,पापा का दुलार ,बहन का स्नेह ,
क्यूँ भूल रहे तुम,क्यूँ मुख मोड़ रहे तुम,
किसी की जीवन भर की थाती हो तुम,
किन्हीं के बुढ़ापे की लाठी हो तुम ,
कहाँ अकेले हो तुम ?/?
अपने एकाकीपन को क्यूँ जबरन ओढ़ रखे हो तुम,
जो राह बंद हो रही उसके आगे दूसरी खुल रही ,
उदास -स्याह सोचों से उबर कर के तो देखो ,
तुम्हारे हिस्से का आसमान बाहें फैलाये सामने है,
अपनी उन्मुक्त ,विहंग उडान उड़ के तो देखो,
बस एक बार-------एक बार तो सोचों।
अंधेरों में कंदील जला के तो सोचो ,
जंगल में जुगनुओं की तरह टिमटिमा के तो देखो,
पूरी जिन्दगी अपनी जी के तो देखो,
बस एक बार ----एक बार तो सोचो,
इस पार की दुनिया में सब कुछ है,
रौशनी कम ही सही ,पर नज़र जाने तक तो है,
हिम्मत जुटा ,कदम बढ़ा कर के तो देखो,
उसपार न जाने क्या होगा ??
ना देखी दुनिया की क्यूँ सोचें,
मधुर घंटी बजाती ,सुकून देती शान्ति की दुनिया,
ये कोरी भ्रम की सुनी हुई बातें हैं,
उम्मीद भरी ,उजास से ख़िली हुई,
एक पूरी दुनिया तुम्हारे सामने पसरी है,
अँधेरी राहों में दिल का दीपक जला के तो देखो,
वीरान पड़े दिल में प्यार बसा के तो देखो,
बस एक बार----एक बार तो सोचों,
समाज मुंह जोह रहा ,परिवार उम्मीदें संजो रहा,
माँ की ममता,पापा का दुलार ,बहन का स्नेह ,
क्यूँ भूल रहे तुम,क्यूँ मुख मोड़ रहे तुम,
किसी की जीवन भर की थाती हो तुम,
किन्हीं के बुढ़ापे की लाठी हो तुम ,
कहाँ अकेले हो तुम ?/?
अपने एकाकीपन को क्यूँ जबरन ओढ़ रखे हो तुम,
जो राह बंद हो रही उसके आगे दूसरी खुल रही ,
उदास -स्याह सोचों से उबर कर के तो देखो ,
तुम्हारे हिस्से का आसमान बाहें फैलाये सामने है,
अपनी उन्मुक्त ,विहंग उडान उड़ के तो देखो,
बस एक बार-------एक बार तो सोचों।
अपनी उन्मुक्त ,विहंग उडान उड़ के तो देखो,
ReplyDeleteबस एक बार-------एक बार तो सोचों।
bahut pyari rachna...
prerna dayak...
sach me aisa hi kuchh karne ki jarurat hai, aaj ke bachcho me ...
behtareen!!
Inspirational .......
ReplyDeleteसच में माता पिता ...परिवार के बारे में सोचना चाहिए ....मन को छूने वाली रचना ...
ReplyDeletemaa-papa ko pahle jagruk hona padega....phir bachhe ko samjhana padega......thnx Sumanji..
Deleteअपने विचारोँ को बहुत ही अच्छे शब्द दिये हैँ । ऐसा मह्सूस होता है कि घट्ना ने लेखक की अंतरात्मा को छु लिया है, इसीलिये तो लिखा कि "किसी की जीवन भर की थाती हो तुम, किन्हीं के बुढ़ापे की लाठी हो तुम- कमाल कर दिया - अभिनन्दन ।
ReplyDelete2-3 ghatna mai dekhi hun...vichlit ho likhi thi.....dhanywad Susheel ji........
Deleteकिसी की जीवन भर की थाती हो तुम, किन्हीं के बुढ़ापे की लाठी हो तुम ,....wah kitna sunder likhti hai aap ...ek sakaratmak drashtikon......bahut sunder Aparna ji
ReplyDeleteshukriya aapka...dr,Mohan Sinha ji,,aapka blogg nahi khul raha...plz dekhen
Deletebhavpoorn sahaj seekh deti sundar rachna ..
ReplyDeletethnx a lot Kavita ji....
Deleteअंतर्मन को झकझोर देने वाला यथार्थ है आपके एक - एक शब्दों में. शायद नई पीढ़ी उस हद तक सोंचने को तैयार नहीं है.....एक नया शब्द इन दिनों ज़्यादा प्रयोग में आ रहा है instant....! ! उसका ही असर ज़्यादा प्रतीत होता है..सब कुछ तत्काल पा लेने की प्रवृत्ति और बिना प्रयास , मेहनत के हासिल कर लेने की इच्छा ने ही हमारे युवाओं को इस ओर धकेला है....इसके लिए काफी हद तक माता - पिता , अभिभावक और समाज ज़िम्मेदार है...हमने बच्चों को आधुनिक बनाने में तो कोई कसर नहीं छोड़ी , लेकिन संस्कार देने में कोताही भी तो बरती है....इस ओर उन्मुख होते हर युवा की मनः स्थिति का विश्लेषण किया जाए तो 99 प्रतिशत में यह पाया जाएगा कि वह 'संस्कार' शब्द , उसके मायने से ही अनभिज्ञ है...! ! ऐसे में वह संस्कारित तो हुआ नहीं...संस्कार एक तरह से सामाजिक बंधन भी है...जिसमें बंधकर या प्रभाव में आकर युवा काफी हद तक अपने से वरिष्ठों को आदर, सम्मान देते हैं....जब यह सीखा नहीं तो उनकी सोच कैसी होगी यह कल्पना की जा सकती है....आपकी पूरी रचना में आदरणीया अपर्णाजी यही दर्द झलक रहा है....सबसे पहले तो हमें अपने युवाओं को विश्वास में लेना होगा..लेकिन विश्वास में लेने के लिए हमें भी तो उन्हें वक़्त देना होगा...इस आपाधापी वाले युग में जब हम मॉल या मॉडरेट शॉप से सुन्दर पैक की हुई और यहां तक की कटी हुई सब्जियां लाकर पकाते हैं तब क्या वह बच्चा समझ पाएगा कि सब्जी बनाने में कितनी मेहनत लगती है...उसे साफ करना पड़ता है, काटते वक़्त सावधानी से देखना पड़ता है कि उसमें कोई कीड़े या ख़राबी तो नहीं दिख रही है....फिर उसे धोया , पोछा जाता है, उसके बाद पूरी तैयारी के साथ छौंक की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है....बस यही हम अपने बच्चों के साथ दूसरे रूप में करते हैं...उनकी हर गतिविधि पर ध्यान रखते हैं, समझाइश देते हैं, प्यार , दुलार से नसीहत भी देते हैं और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरकर , गोद में सर रखकर उसे आत्मीयता और जुड़ाव का अहसास भी कराते हैं....पर क्या आज यह सब कर पा रहे हैं....शायद नहीं....? हमें पहले अपने ही कार्य व्यव्हार को देखना होगा, अपनी ही प्रवृत्ति को सुधारना होगा, आपाधापी के बीच अपने ही ख़ून के लिए वक़्त भी निकालना होगा ...तब कहीं जाकर हम कुंठित और हमसे दूर हो रही तरुणाई को फिर से अपने साथ जोड़ पाएंगे...और जब वो वापस हमसे जुड़ जाएगा , सच मानिए निःसंदेह यह प्रवृत्ति भी निष्प्राण हो जाएगी....आप ही के शब्दों में " रौशनी कम ही सही ,पर नज़र जाने तक तो है ", " उम्मीद भरी ,उजास से ख़िली हुई, एक पूरी दुनिया तुम्हारे सामने पसरी है" ," अपनी उन्मुक्त ,विहंग उडान उड़ के तो देखो, बस एक बार-------एक बार तो सोचों...." बस इस उडा़न के लिए ही तैयार करना होगा...और जब किसी को उड़ान के तैयार किया जाता है तो काफी कुछ सिखाया , बताया जाता है , हमने पक्षियों में भी यही प्रवृत्ति देखी है....फिर हम इंसान हैं..मानव हैं, बस हममें भी मानवता के भाव फिर से लाने होंगे, सच मानिए आपकी रचना सार्थक है , सार्थक रहेगी और सदा के लिए स्वर्ण अक्षरों में लिखकर सहेजी जाएगी, संदेश बनेगी, विचार बनेगी, क्रान्ति बनेगी....लेकिन इसके लिए हममें भी समर्पण होना चाहिए.....बहुत ही सुन्दर विचार और काव्य रचना. आदरणीया अपर्णाजी मैं किन शब्दों में आपको धन्यवाद दूं...समझ नहीं पा रहा हूं ...बस मेरा साधुवाद स्वीकारें. बहुत - बहुत बधाई.
ReplyDeleteaapne itna sarthak lekh likh dala,man abhibhut ho gai,isse achha samjhna or cmnt kya hoga,bhasha or bhavna ke aap parikhi hain...bat to aapne sahi kahi,ye to hum-aap ko hi sahejna hoga...dhanywad Rituparn dave ji...
Deleteसच कहा है ... आजकल की पीड़ी खुद ही एकाकी हो रही है ... अपने आप को बस शोदा कहलाने में मज़ा आने लगा है उन्हें ... अपना नजरिया बदलना होगा उन्हें ...
ReplyDeleteunhen bhi apna nazriya badalana hoga or hame bhi unke bachpan se hi unhe sahejana hoga....thnx..Digmbar ji....
Deleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आप को आमंत्रित किया जाता है। कृपया पधारें आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं आपकी.
ReplyDeleteAabhar aapke ji....Nihar Ranjan ji..
Deleteउम्मीद भरी ,उजास से ख़िली हुई,
ReplyDeleteएक पूरी दुनिया तुम्हारे सामने पसरी है,
अँधेरी राहों में दिल का दीपक जला के तो देखो,
वीरान पड़े दिल में प्यार बसा के तो देखो,
आदरणीया अपर्णा जी ..आज के युवाओं के नकारात्मक दिशा में खो जाने. तनाव से ग्रसित हो एकाकीपन का लबादा ओढ़ दुनिया को अलविदा कहने पर ..अच्छा प्रहार और सीख देती अच्छी रचना ,,घावों पर मरहम की सख्त जरुरत है .ओउम श्री गुरुवे नमः
भ्रमर ५
ji Surendra ji aapne bilkul sahi kaha......thnx
Deletethnx..Lalit Chahar ji....
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