Wednesday 2 April 2014

जीवन-चक्र

जन्म-मरण के चक्र निरंतर सुख-दुःख कि अनवरत कड़ी,
रोग-व्यथा  की  रेखाओं   पर   चली   सनातन  काल  घडी।
रोग-जीव    की    नश्वरता    का    बड़ा    चतुर   व्यापारी,
मृत्यु   गीत के   व्यापक   स्वर  का  सर्व   सुलभ   संचारी।
रोग   जीव   के  मोह   भ्रमण   का   एक  विराम   स्थल  है,
काया   की   कुंठित   शक्ति    के   लिये   एक   सम्बल   है।
भोग प्रकृति का स्वर्ण हिरन उन्मुक्त विचरता काम गली में,
जो दिवा  स्वप्न में भ्रमित  भ्रमर  फँस जाते मृत्यु  कलि में।
भोग  मनुज के  अंतरमन की  ज्वाला  शमन नहीं कर पाता,
उसकी  दैहिक  भूख  निरंतर  द्विगुणित  ही  करता  जाता।
भोग    जहाँ    है ,शांति   नहीं     है  ,रोग   वहाँ    अनुयायी,
जितना   सुखकर   जो    पदार्थ   है   उतना   ही    दुखदाई।
योग   आत्म   चिंतन  की    आभा   अंतर्मन     का    भेदी,
काल   कर्म   के    सागर  तट  पर   प्यासा    रहे    विवेकी।
योग  ब्रह्म   के  ज्ञानमन्त्र    का    सागर   अगम   अथाह,
भव   सागर   के   गहन   तिमिर  में   जीव  खोजता   राह।
योग  राग  वैराग्य  मार्ग  पर   समदर्शी  संयम   से   जाता,
धर्म-अर्थ   से  काम  मोक्ष  तक  द्वार  स्वतः खुल   जाता। 

13 comments:

  1. जो भी आया है, वो जाएगा .......... जिंदगी का चक्र चलता रहेगा :)
    कितना सुंदर .......... बहुत बहुत प्यारा लिखते हो !!

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  2. सुन्दर...और बेहद सार्थक.

    अनु

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  3. "जितना सुखकर जो पदार्थ है उतना ही दुखदाई।" -" काल कर्म के सागर तट पर प्यासा रहे विवेकी" बहुत ही सुन्दर लिखा है। रचना लिखने मे जिगर का खून जलता है। लेखक ने कितना दर्द भोगा होगा। पाठक कह नही सकता है। बहुत बहुत बधाई।

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  4. जन्म-मरण के चक्र निरंतर सुख-दुःख कि अनवरत कड़ी,....yahi to jeevan saty hai

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  5. बड़ी ही दार्शनिक अंदाज़ में लिखी हुई एकदम सधी हुई रचना। आपकी लेखनी अब प्रौढ़ हो चली। बहुत खूब।

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  6. gahan soch ke sath likhi sarthak rachna ...

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  7. जीवन दर्शन,आध्यात्म की चिंतनपरक रचना
    बहुत सार्थक और सुंदर
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है---- मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    और एक दिन

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  8. bahut sundra jeevan ka marmik udgar ,,,,,

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  9. sundar tarike se uekera gaya jeevan chakra

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  10. This comment has been removed by a blog administrator.

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  11. जीवन दर्शन पूर्ण बहुत ही सुन्दर कविता .......

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