Monday 12 January 2015

कविता-- हद में डूबा प्यार

मैं खामोश अंग बनी  बैठी  कायनात की,
ये जंगल,झील,हरियाली,सुरमयता,
तुम कब गए थे उसपार,
मैं सोचते रहती हूँ,
क्या तुम्हे याद है वो तिथि,
तो क्यूँ न फिर आ रहे,
हर सुबह आस जगाती,
दिन इन्तजार में जाती,
शाम अवसाद लेके आती,
रात आँसुओं में भिंगोती,
झील के इसपार हद है हमारी,
तुम्हारी हद ,कहाँ शुरू कहाँ खत्म,
उसपार है सबकुछ,
तुम जो हो ,
इसपार मेरा प्यार,मेरी तन्हाई,
और हद में समोई मैं।  

3 comments:

  1. अपनी अपनी हद की तलाश में प्यार कहीं गुम जाता है ...

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  2. और हद में समोई मैं।

    हदें शरीर को बाँध देती है पर मन तो वहां पहुँच ही जाता है .....बहुत सुन्दर

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  3. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
    नई पोस्ट : दिल का मलाल क्या कहा जाए

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