Saturday 11 April 2015

कविता--नारी मुक्ति का दर्द





दिलकश चेहरे के पीछे,
दर्द का सागर लहराता है,
औरत कभी माँ-बहन बनती,
कभी डाकिन-शाकिन शब्दों से सुशोभित होती,
कैसी बिंडबना है,
इस पुरुष के समाज में,
उसकी प्रतिस्पर्धा सिर्फ औरत से ही है,
आगे-पीछे,अगल-बगल,
कहीं भी बढ़ने में उसे,
एक औरत से ही मात खानी है,
पुरुष तो ऊपर की सोपान पर बैठा,
सर्वोत्तम था,है और कदाचित रहेगा,
वो बखूबी जानता है,
कि तुम्हे कैसे निर्बल बनाना है,
तुम गर समर्थ हो गई,
अपने को पहचान गई,
सदियों की सुनियोजित षडयंत्र को जान गई,
पुरुष की सत्ता को तुम्हारी चुनौती,
नेस्तनाबूद कर देगी,
और फिर यातना से नारीमुक्ति,
का युग,दूर नहीं रह जायेगा। 

13 comments:

  1. मेरी समझ से यातना से नारीमुक्ति, का जो हौवा खड़ा किया जा रहा स्तिथि वैसी है नहीं ..., हाँ कुछ चुनौतियाँ है किन्तु उनका समाधान सुनियोजित षडयंत्र, चुनौती, संघर्ष जैसे शब्दों से होना नहीं है..होना है तो मात्र सोच बदलने से.. यानी सहयोग.. दोनों रथ के दो पहिये.. जो असमान होंगे तो संतुलन गड़बड़ रहेगा जैसी सोच बिकसित करने से हो सकती है ! पुरुष के समाज में,
    उसकी प्रतिस्पर्धा सिर्फ औरत से ही है, मै इस सोच से सहमत ना हूँ,, !

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  2. नारी की स्थिति हमेशा से ही समाज में अबला स्त्री की रही है जिसको बदलने का समय आ चूका है .. हिम्मत ओर लगन से नारी अपना स्थान जरूरी पा लेगी ... अच्छी रचना ...

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  3. वाह ! अति सुन्दर प्रस्तुति ...

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  4. सुंदर रचना -----बहुत खूब

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  5. Aparna ji Nari na Nari ke khilaaf hona ya mukabla karna bhi purush satta ka vistaar hai. yaha stree aur purush vyakti na hokar vichar hai

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  6. पुरूष कहीं भी जा बैठे
    नारी बिन खुद अधूरा है ।

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  7. सुंदर रचना..और समाज में सदियों से व्याप्त अंध मान्यताओं के विरुद्ध नारीमन में उठी टीस को अभिव्यक्त करती प्रस्तुति।

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  8. पुरूष कहीं भी जा बैठे
    नारी बिन खुद अधूरा है ।

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  9. अर्धनारीश्वर की कल्पना यूँ ही नहीं की गयी होगी।

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  10. नारी के आगे ढेरों समस्‍याएं हैं पर उतनी ही संभावनाएं भी हैं, क्‍योंकि नारी के पास खोने को कुछ नहीं हैं।

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