Saturday 4 July 2015

आजकल के दिन-रात इंद्रधनुष सरीखे अपने में सातों रंग समेटे रहते है।  कभी धूप ,कभी छाँव ,कभी नीला आसमान ,कभी धूसर ,कभी उजले बादल तो कभी काले-घनेरे।  रात कभी तारोंवाली ,कभी बादलों से ढंकी ,कभी गरजती-बरसती भयानक तो कभी मंदबयार से सुवासित मस्त करती । जाने कितने तरह का ताना-बाना  बुनती हवा है। इन ताने-बाने से अछूता कौन बच पाता है।साज़िश में शामिल सारा जहाँ है,जर्रे-जर्रे की ये इंतेजा है।  
क्या आलम हैं ,कभी घनघोर वर्षा हो रही तो कभी इतरा-इतरा के हलके फुहार ,कभी आंसू बन रहे वर्षा तो कभी राहत दे जा रहे हैं बूंद । जाने कितनी दुआओं को समेटे  बूंदें इतराते हुए गगन  से झरती है।   कभी  रूहों में बसी मोहब्बत के विरह के आंसू लगते हैं तो कभी  लगता की दीवानों की चाहत की प्यास बुझाने ये बूंद-बूंद टपक ,ताप मिटा राहत पहुंचा जा रहें । बादलों ने हवाओं के जरिये धरा को जो संदेस भेजें हैं ,यक़ीनन दीवाने तो और मदमस्त हो रहें । गर्म सांसों ने, मौसम की ठंडी हवाओं ने आसमान के सीने पे रूमानियत के दस्तखत किये हैं । नीले आसमान की चादर भींगी है ……. कोई रोया है रातभर यादों में या किसी की कशिश है । बादलों के धेरे में आबद्ध चांदनी में कोई अक्स उभरता है,दिल के तस्वीर की ताबीर लगती है । सुनहली किरणें जब बादलों में अक्स बनाती कभी किरणों की परी कभी सुनहली नज़र आती,कभी घटाओं में अक्स बनाती तो स्याह लिहाफ में सिमटी सफ़ेद परी नज़र आती है । बस हो गया चाहतों के शगूफे …. यूँही नहीं सीने में तूफां मचलते ,ऐसे नहीं उबलते बैठे-बैठे मस्ती के धारे ,ऐसे नहीं सुलगते धीरे-धीरे जज्बात ,ये वर्षा हीं तो है … वर्षा-वर्षा-कितनी वर्षा … क्या न करवा जाये ये वर्षा ……….
बरजोरी पुरबैया छेड़े ,बांधे मेहँदीवाले हाथ ,
हर बौराया सपना,सीख रहा पूरा होने का दांव,
जाने क्या हुआ ,मन उड़ चला हवा के साथ ,
कैसे कहूँ,किससे कहूँ ,जान गया है पूरा गाँव ………….

4 comments:

  1. जाने क्या हुआ ,मन उड़ चला हवा के साथ ,
    कैसे कहूँ,किससे कहूँ ,जान गया है पूरा गाँव ...
    जो बात पूरा गाँव जान गया उसे मन नहीं जान पाता कई बार ... यही तो प्रेम है ...

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  2. वर्षा-कितनी वर्षा … क्या न करवा जाये ये वर्षा ……….
    बरजोरी पुरबैया छेड़े ,बांधे मेहँदीवाले हाथ ,
    हर बौराया सपना,सीख रहा पूरा होने का दांव,
    जाने क्या हुआ ,मन उड़ चला हवा के साथ ,
    कैसे कहूँ,किससे कहूँ ,जान गया है पूरा गाँव …
    ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बरजोरी पुरबैया छेड़े ,बांधे मेहँदीवाले हाथ ,
    हर बौराया सपना,सीख रहा पूरा होने का दांव,
    जाने क्या हुआ ,मन उड़ चला हवा के साथ ,
    कैसे कहूँ,किससे कहूँ ,जान गया है पूरा गाँव ………
    बहु त ही सुंदर पंक्तियाँ .वर्षा का असर ऐसा ही होता है लगभग सबके ही साथ

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