Monday 28 December 2015

हद में डूबा प्यार

मैं  खामोश अंग बनी  बैठी  कायनात की,
ये जंगल,झील,हरियाली,सुरमयता,
तुम कब गए थे उसपार,
मैं सोचते रहती हूँ,
क्या तुम्हे याद है वो तिथि,
तो क्यूँ न फिर आ रहे,
हर सुबह आस जगाती,
दिन इन्तजार में जाती,
शाम अवसाद लेके आती,
रात आँसुओं में भिंगोती,
झील के इसपार हद है हमारी,
तुम्हारी हद ,कहाँ शुरू कहाँ खत्म,
उसपार है सबकुछ,
तुम जो हो ,
इसपार मेरा प्यार,मेरी तन्हाई,
और हद में समोई मैं।  

3 comments:

  1. दिल को छूते लाज़वाब अहसास...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  2. सुंदर भावाभिव्यक्ति। नववर्ष की शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  3. बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete