Friday 21 June 2013

बंधन ही जीवन की आदर्श मुक्ति है .सागर तो कुलों में तुनुक-तुनुक बंधन में बंधकर भी असीम है .चाँद का आकर्षण ही तो लहरों का कारण है---पवन उन्मुक्त,चंचल होते हुए भी सुरभि का मह-मह ,मृदु -मृदु भार ढोता ही है न -----माघ का चाँद ..चांदी बिखरेगा,,समुंदर को उछालेगा ,तरियों को,सागर-सुता को लहर-लहर पर ,,छहर-छहर कर नाचवायेगा ,,,देगा तारों की किरणों को कांपने का कारण ---------सतदल कमल को ,ऋतुफल सफल करने जलपरियाँ आयेगी ..चाँद भी फाल्गुन कृष्ण-पक्ष प्रथमा को चौदहवी सा बन्ने की कोशिश करेगा --------
बिछड़ कर बादलों की भीड़ में गम हो गया था जो ,
वो पीला चाँद आँखों में समंदर ले के आया है -----------------------

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