Thursday 27 June 2013

फासले प्यार के

                                               
                                             
तुम बोलते याद करते हो मुझे ,याद में उतर प्यार करते हो मुझे ,
तुम इसरार करते ------क्या तुम मुझसे प्यार करती ???
क्यूँ नहीं इकरार करती ,प्यार-प्यार सिर्फ प्यार बोलो ,
एकबार नहीं बारम्बार बोलो ..........
किसतरह मै  क्या बोलूं ,कैसे अभिसार करूँ ,
कैसे स्वीकार करूँ ,क्या दूँ अभिव्यक्ति अपनी ......
मेरी हर पहर में बसा है तू ,
हर डगर पे खड़ा है तू ,
हर लम्हें में छुपा है तू ,
हर कतरें,हर शै में बहा है तू ,
हर क़दमों के साथ गुंथा है तू ,
हर आंसू के बूंद के साथ टपका है तू ,
दिल की आवाज बन गया है तू ,
इसके आगे क्या कहूँ .......
हैं जड़े धरती में तेरी ,तलाशती आँखे नये आयाम ,
हदें-उड़ान पूरी कर ,सभी मंजिलों से गुजर जा तू ,
मै अवाक् तकती-नापती ,
अपने-तुम्हारे बीच  के फासलें ,
कैसे कर ये फासलें मिटायें,
किसतरह प्यार की लौ जलाएं ...........

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