छोटी सी,पतली सी,सांवली,मामूली नक्-नक्श,जीर्ण-शीर्ण काया की लड़की कुछ दुरी पे बैठी है।लीजरपीरियड हमलोगों के चल रहे हैं तो दोस्तों के साथ मैदान में बैठ हंसी-मजाक,बतकही चल रही है। मेरी दोस्त उसलड़की के लिये बताना शुरू की तबतक वो उठकर शायद क्लास करने चली गई "इस लड़की का एक प्रेमी है ,दोनों एक ही गाँव के रहनेवाले हैं ,लड़की दलित है और लड़का सवर्ण। जाने कैसे क्या हुआ था पूरा तो नहीं जानती पर हाँ लड़का इसकी पूरी जिम्मेवारी उठा लिया है ,शादी-ब्याह तरह का कुछ होगा की नहीं पर लड़का सभी के सामने कुबूल करता है की वो इससे प्यार करता है गार्जियन की तरह इसकी देखभाल करता है ,हर दुसरे-तीसरे दिन पर वो कॉलेज आयेगा ,उसकी देखभाल करता है ,उसकी हर आवश्यकता पूरी करता है ,घंटों मैदान में बातें करता रहता है ,सप्ताह में एकदिन बाहर भी ले जाता है ,पूरा कॉलेज इसबात का गवाह है "मै दिलचस्पी लेकर सुन रही थी ,गाँव की पृष्ठभूमि मेरी भी है इसलिये जात-पात,भेद-भाव,रुढीवादिता ,उंच-नीच,इन शब्दों का अर्थ मै बखूबी समझती हूँ। फिर इस लड़का-लड़की का सम्बन्ध?माथा साथ नहीं दे रहा था पर कुछ न कुछ गूढ़ कहानी जरुर है। "अरे यार भगवान की भी बेइंसाफी समझ नहीं आती ,बिन मांगे किसी को छप्पर फाड़ दिये और हमलोग पूरा दामन फैलाये बैठें हैं तो भगवानजी का कान बंद "मुझे दोस्त का ठुह्का लगा और मै सोच से बाहर आ गई,फिर तो हंसी-मजाक ,ठहाकों के बीच हमलोग उठकर क्लास करने चल दिये। बात आई-गई हो गई ,चंचल मन था ,छोटी उम्र थी ,कुछ ही दिनों में इसबात को भूल दूसरी बातों में ध्यान लग गया।
हमारे कॉलेज के दिन पढाई,हंसी-मजाक और नितनवीन शरारतों में गुजरते जा रहे
थें ,कुछेक महीने हो चले थें ,गेट पे पहुंची ही थी की कालेज के अंदर से उसी दलित लड़की को एक लड़के के साथ बाहर निकलते देखी और मै यूँ चौंकी जैसे सांप सूंघ गया ,वो लड़का इतना सुन्दर,सुघड़,स्मार्ट था की मै अवाक् सी हो गई ,मेरी दोस्त केहुनी मारी "यही है यार देखो ,उस लड़के के सामने ये लड़की कैसी लग रही है ,हाँ ये दीगर बात है की किस्मत बेजोड़ है ,रूप रोये भाग्य टोये "मै सब सुन के भी न सुन पा रही थी। वो लड़की कॉलेज के एक किरानीबाबू को चाचाजी प्रणाम कहके उस लड़के के साथ कहीं बाहर चली गई। जाने कैसी इर्ष्या का भाव मन में उत्पन्न हो रहा था ,कॉलेज की सुंदर लड़कियों में मेरी गिनती होती थी और पढाई में भी मेरी तूती बोलती थी ,क्या भाव जग रहे थें मुझमे समझ नहीं आ रहे थें,बस लगता था ये प्यार नहीं हो सकता। भगवान को क्या पड़ी थी जो इतनी बड़ी कहानी को जामा पहना चमत्कार कर रहें हैं मै इसी भावावेश तहत ऑफिस के उसी बाबू के पास पहुँच गई जिसे वो लड़की चाचाजी कहके प्रणाम की थी ,"मानिकपुर गाँव है बच्ची ,वहां सभी जाति का टोला है पर ठाकुरों का वर्चस्व चलता है। लड़की दुसाध जाति की है और लड़का सवर्ण। लड़की के परिवार में १-२ सर्विसवाले हो गए हैं ,इनके टोला में भी कुछ पढ़े-लिखे हैं जो अच्छे पदों पे कार्यरत हैं ,यानी की दलितलोगों में उत्थान है अतः ये लोग भी ठाकुरों के सामने सर उठाने लगे हैं। लड़का-लड़की एक ही उम्र के हैं और अक्सर साथ खेलते भी थें ,घटना जब शुरू हुई थी दोनों किशोरावस्था के थें। लड़की की फुआ को लड़के का चाचा रस्ते से उठा लिया था,दोस्तों के साथ कुकर्म करके मरणावस्था में घर के बाहर फेंक भाग गया था ,फुआ ठाकुर का नाम बता मर गई थी। लड़की का दादा उस ठाकुर को गाँव के बाहर पकड़ जान से मार अपनी बेटी की बेइज्जती का बदला ले लिया। ठाकुर,उसपे जमींदार ,एक दलित की इतनी हिम्मत कैसे सह जाता ,बस वही से जंग और दांव-पेंच शुरू हो गई ,ठाकुरलोग इस लड़की की माँ-फुआ को खेत में कम करते हुए दबोचे ,कुकर्म के बाद बड़ी बेदर्दी से उन दोनों को वहीँ मार डाला ,ये लड़की भी उनदोनो के साथ खेत गई थी ,इस लड़के को वहां देखकर बातें करने लगी थी ,खेलने लगी थी ,दोनों ही उस जघन्य अपराध के मूक गवाह बने ,लड़की दुःख और डर से पागल के समान हो गई थी ,शांत हो गई थी। लड़का सभी का विरोध करके लड़की के साथ रहा ,उसीसमय से वो लड़की को सबकुछ करते रहा,अकेला लड़का है माँ-पापा का,पैसा की कमी नहीं तो वे लोग कुछ बोलते नहीं। लड़की ठीक हुई ,पढ़ते रही ,लड़का हर वक़्त इसके साथ है और सहायता करते रहा। धीरे-धीरे दोनों का परिवार विरोध के बाद शांत हो गया है। लड़का खुलके इसे सहायता करता है ,प्यार करता है सोचके लड़की भी ग्रहण करती है और इस् पे पूरी तरह आश्रित है " बाबू सब सुना जा चुके थें।
क्या है ये?सच्चाई तो यही लग रहा कि ये प्यार नहीं ,बस दया का बदला रूप है ,एक सवर्ण का दलित के प्रति। आदिकाल से यही तो होते आया है ,एक तो पुरुष उसपे सवर्ण ,,जमींदार का बेटा ,सामने एक बेबस दलित लड़की ,दया की पात्र ,बस उद्धार करने चले। कहाँ कोई प्रेम कहानी बन प् रही है। लड़के के माँ-बाप भी शायद इसलिए चुप हैं की जहाँ,जिसके साथ जो करना है करे ,शादी बस अपने जात में बराबर के परिवार में करनी है। लड़की के पापा भी छोड़ दियें हैं की एसा लड़का उन्हें कहाँ मिलनेवाला ,जो इतना प्यार करता है।क्या ये प्यार है जहाँ रूप-रंग,जात -पात,भेद-भाव,संस्कार-शुचिता सब तिरोहित हो गए हैं।
लड़की इसे अपनी नियति मान सच्चाई से अवगत हो जाये तो अच्छा ,पर इसे अपना किस्मत मान इतराने लगे तो क्या होगा?लड़का किसी दबाबवश इसे छोड़ दिया ,माँ-बाप दूसरी लड़की से शादी करवा दियें तो क्या ये लड़की इसके प्यार को भूल जायेगी ,इसके दया को समझ गर्त में डूब जायेगी ,या बाहर की औरत का दर्ज़ा कुबूल करेगी ,क्योंकि लड़का शादी अभी किया नहीं और शादी आसानी से कोई होने भी न देगा। निर्णय देना आपके हाथों में है ,कहानी तो हमने परोस ही दिया है।
यह शुद्ध सौ प्रतिशत स्कूल / कॉलेज वाला प्यार ही है। पुरानी मानसिकता वाले इसे ऊंच नीच ,अमीर गरीब या कोई और जामा पहना दे पर प्यार होता ऐसा ही है कुछ,जिसको अभी कई कसौटियों पर कसना होगा .
ReplyDeletepyar to pyar hai,par ye kadachi pyar nahi hai,jo kar den....thnx.
Deleteजिंदगी तेरे कितने रूप ....... ये मानसिकता नहीं बदल सकती !
ReplyDeletejandgi bahut aayamon me pesh aati hai...mansikta badlegi..waqt lagega..
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 30/11/2013 को मेरा ये मन पंछी बन उड़ जाता है...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 052)
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
bahut-bahut shukriya ji aapko ye man hetu...
Deleteवाह...उत्तम...इस प्रस्तुति के लिये आप को बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
dhanybad ji....kafi achhi gazal hai aapki....
Deletezabardast bhav ............ marmsparshi !:)
ReplyDeleteaabhar...swagat....Sanjay law ji...
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