समय तप रहा ,उमस बढ़ रही ,मौसम उदास है ,
आवेग व्यथित है,हादसे जुबां हो गये हैं ..........
कैसा दौड़ चल रहा जिन्दगी में जहाँ जुबां बंद हो गए हैं,संवेदनाएं गूंगी हो चुकी है,हादसों की श्रंखलाबद्ध कड़ियाँ गूंथ गई है ,सच पूछिए तो मन घबड़ा गया है--दुःख देखते-सुनते .इतने दर्द को कहा समेटा जाय ,बुद्धिजीवी हो या आम नागरिक मूक हो चुके हैं,अभिव्यक्ति पाषण हो चुके हैं ,दर्द की भाषाएँ समाज-देश के धरातल पर एक हो चुके हैं ..जब अभिव्यक्ति आरम्भ होगा ,भावनायों का जल सा बिछ जायेगा ..
उतराखंड(केदारनाथ)में इतनी प्रलयकारी प्रकृति प्रकोप हुआ,इतना विन्ध्वस हुआ की इसे विनाश का चरम कहा जा सकता है ,शिव का धाम धराशायी हो चूका है,हजारों लोग काल -कलवित हो चुके हैं ,ये अब पुरानी घटना है,देशव्यापी खबर है इसलिए इसपर बोलना या डाटा देना ना करुँगी ,पर किसी घटना के बाद की जो वस्तुस्थिति प्रकट होती है या उसपे जो प्रतिक्रिया व्यवहार की-विचार की प्रगट होती है ,सोचनीय है,शर्मसार करती है हमें ..केदारनाथ की स्थिति सुनने या देखने पे मुंह जिगर को आता है ,कैसे आपदा से जूझकर ,कितने दर-कष्ट से लोगों ने मृत्यु को गले लगाया होगा??जो बच गये हैं वे भी तो मृत्युयंत्रणा ही भुगत रहे हैं .न सर छुपाने को छत न पेट भरने को अनाज ,नाही सुरक्षा के कोई साधन ..फिर कैसे कोई सौदा कर रहा जिन्दगी-मौत का,कैसे कोई उन्हें लूट सकता है ,कैसे कोई दरिंदगी कर सकता है ,लेकिन सबकुछ इसी धरती पे होता है और इन्हीं इंसानों के हाथ होता है ,दुःख को देखकर भी जिन्हें अपना स्वार्थ भुनाने का याद रहे क्या कहिये येसे लोगों को ..लेकिन ये समाज इन सबों के बीच भी जमा रहता है ,जिन्दगी न ख़त्म होती है न इसके मेले ख़त्म होते हैं न ही इसकी गति पे कोई असर होता है .......ये ही सच है ..
केदारनाथ की घटना पे राजनीति भी खूब हो रही है .दिल से कौन सोचता है ,बस इसी चक्कर में सभी पड़े हैं की ज्यादा नाम और फायदा कौन भुना सकता है ...ओह क्या त्रासदी है की दर्द की भाषा गूंगी और निष्क्रिय हो चुकी है. मीडिया की मनमानी वैसे ही चलती है ,पर ये भी सही है कि वैसी जगह भी जाके येलोग ...थोड़े-बहुत अतिश्योक्ति को गर छोड़ दिया जाये तो ...बहुतेरे सच्चाई से अवगत ये ही करवाते हैं ,बहुत जगह चिढ़ होती है तो बहुत जगह साधुबाद देने को दिल करता है ....
जिन्दगी के साथ मौत की भी सौदेबादी हो रही ,उनतक प्रयाप्त सहायता नहीं पहुँच पा रही ,जो जिन्दा हैं वो जिन्दगी बचाने के लिये मरणायंत्र पीड़ा से ही जूझ रहे हैं ..कहीं येलोग जिन्दगी की लड़ाई हार न जाये ,जिजीविषा शान्त न हो जाये ,आशा का दामन झिटक ना जाये .....उम्मीद की लौ हर हालत में जलती रहनी चाहिए .....
आवेग व्यथित है,हादसे जुबां हो गये हैं ..........
कैसा दौड़ चल रहा जिन्दगी में जहाँ जुबां बंद हो गए हैं,संवेदनाएं गूंगी हो चुकी है,हादसों की श्रंखलाबद्ध कड़ियाँ गूंथ गई है ,सच पूछिए तो मन घबड़ा गया है--दुःख देखते-सुनते .इतने दर्द को कहा समेटा जाय ,बुद्धिजीवी हो या आम नागरिक मूक हो चुके हैं,अभिव्यक्ति पाषण हो चुके हैं ,दर्द की भाषाएँ समाज-देश के धरातल पर एक हो चुके हैं ..जब अभिव्यक्ति आरम्भ होगा ,भावनायों का जल सा बिछ जायेगा ..
उतराखंड(केदारनाथ)में इतनी प्रलयकारी प्रकृति प्रकोप हुआ,इतना विन्ध्वस हुआ की इसे विनाश का चरम कहा जा सकता है ,शिव का धाम धराशायी हो चूका है,हजारों लोग काल -कलवित हो चुके हैं ,ये अब पुरानी घटना है,देशव्यापी खबर है इसलिए इसपर बोलना या डाटा देना ना करुँगी ,पर किसी घटना के बाद की जो वस्तुस्थिति प्रकट होती है या उसपे जो प्रतिक्रिया व्यवहार की-विचार की प्रगट होती है ,सोचनीय है,शर्मसार करती है हमें ..केदारनाथ की स्थिति सुनने या देखने पे मुंह जिगर को आता है ,कैसे आपदा से जूझकर ,कितने दर-कष्ट से लोगों ने मृत्यु को गले लगाया होगा??जो बच गये हैं वे भी तो मृत्युयंत्रणा ही भुगत रहे हैं .न सर छुपाने को छत न पेट भरने को अनाज ,नाही सुरक्षा के कोई साधन ..फिर कैसे कोई सौदा कर रहा जिन्दगी-मौत का,कैसे कोई उन्हें लूट सकता है ,कैसे कोई दरिंदगी कर सकता है ,लेकिन सबकुछ इसी धरती पे होता है और इन्हीं इंसानों के हाथ होता है ,दुःख को देखकर भी जिन्हें अपना स्वार्थ भुनाने का याद रहे क्या कहिये येसे लोगों को ..लेकिन ये समाज इन सबों के बीच भी जमा रहता है ,जिन्दगी न ख़त्म होती है न इसके मेले ख़त्म होते हैं न ही इसकी गति पे कोई असर होता है .......ये ही सच है ..
केदारनाथ की घटना पे राजनीति भी खूब हो रही है .दिल से कौन सोचता है ,बस इसी चक्कर में सभी पड़े हैं की ज्यादा नाम और फायदा कौन भुना सकता है ...ओह क्या त्रासदी है की दर्द की भाषा गूंगी और निष्क्रिय हो चुकी है. मीडिया की मनमानी वैसे ही चलती है ,पर ये भी सही है कि वैसी जगह भी जाके येलोग ...थोड़े-बहुत अतिश्योक्ति को गर छोड़ दिया जाये तो ...बहुतेरे सच्चाई से अवगत ये ही करवाते हैं ,बहुत जगह चिढ़ होती है तो बहुत जगह साधुबाद देने को दिल करता है ....
जिन्दगी के साथ मौत की भी सौदेबादी हो रही ,उनतक प्रयाप्त सहायता नहीं पहुँच पा रही ,जो जिन्दा हैं वो जिन्दगी बचाने के लिये मरणायंत्र पीड़ा से ही जूझ रहे हैं ..कहीं येलोग जिन्दगी की लड़ाई हार न जाये ,जिजीविषा शान्त न हो जाये ,आशा का दामन झिटक ना जाये .....उम्मीद की लौ हर हालत में जलती रहनी चाहिए .....
utam
ReplyDeleteaap mere blog tak aaye...dhanybad...yunhi sadaiv hausala badhte rahen....
Deletesahi kaha ..ye vibhishika ke bad ki trasadi hai ...
ReplyDeletehan Kavita ji,trasdi bhi kaisi...prashan-tantra sust n beparwah ho gaye hain....
Deleteइस घटना मे वेदना चरम सीमा तक पहुंच गई है। आश्चर्य है कि मौसम विशेष्ज्ञ की चेतावनी के बाद भी यात्रा जारी रखी गई। ऐसे अधिकारी को सजाये मौत मिल्नी चहिये और उसके परिवार को भी 2 लाख रुपये भी। आंसू आंखो मे भर जाते है।
ReplyDeleteisse dukhad to kuch ho hi nahi sakta....prashasan or tantr apni jimmewari samjhte hi nahi,aapne thik kaha saza to milni hi chahiye...
Deleteएक गीत है " सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया...." पर यहां तो बेशर्मी की हद हो गई है...चेतावनी के बाद भी होश में नहीं आए और इतनी बड़ी त्रासदी हो जाने के बाद भी नींद नहीं टूटी है....लोगों ने सब कुछ खो दिया ....इस अपूरणीन क्षति को लेकर जरा भी शर्मसार नहीं है सरकार ...न केन्द्र की और न राज्य की....हद तो तब हो गई जब कुछ साधुओं के पास रुपए और जेवरात भी बरामद हुए जो आपदा में जान गंवा चुके धर्मभीरुओं के बताए जा रहे हैं.......कुछ भी हो इस त्रासदी के लिए सरकार तो दोषी है साथ ही व्यवस्था भी दोषी है....वर्षों पहले इसी त्रासदी की भयावहता को भांप चिपको आन्दोलन चला चुके वयोवृध्द हो चुके सुन्दरलाल बहुगुणा की याद आज बार - बार आ रही है....कितनी दूरदर्शी सोच रही उनकी....सच भी है जब हम प्रकृति के श्रंगार को बदरंग करेंगे तो प्रकृति कब तक यह दर्द सहेगी....और फिर वही हुआ सौ सुनार की एक लुहार की ....अपर्णाजी आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से व्यथा और व्यवस्था पर लिखा है......आपके ही शब्दों में " जिन्दगी के साथ मौत की भी सौदेबादी हो रही ,उनतक प्रयाप्त सहायता नहीं पहुँच पा रही ,जो जिन्दा हैं वो जिन्दगी बचाने के लिये मरणायंत्र पीड़ा से ही जूझ रहे हैं ..कहीं येलोग जिन्दगी की लड़ाई हार न जाये ,जिजीविषा शान्त न हो जाये ,आशा का दामन झिटक ना जाये .....उम्मीद की लौ हर हालत में जलती रहनी चाहिए ..... " इसी उम्मीद पर हम भरोसा करके एक बार फिर यह संतोष दिला लें कि देर आयद दुरुस्त आयद....काश सरकार और तंत्र अब भी चेत जाता और कुछ सार्थक और चिर स्थायी व्यवस्था के लिए चिंतन कर कार्य परिणिति को अंजाम दिया जाता तो पीड़ित मानवता के साथ भविष्य में मानवता के साथ ऐसा घिनौना कृत्य न सामने आता. सुन्दर आलेख और उससे बड़ी अभिव्यक्ति और भावना के लिए आपका साधुवाद.
ReplyDeleteyaha to ye aalam hai ki hosh me aane ke bad turant behoshi chha jati hai..sare tantr fail hai...systam dam tod rahen hain....bas sirf sulgte rahiye....Dave ji kuch to hona hi chahiye.....bahut-bahut dhanybad aapka ji bhawna ko samjhen ke liye.....
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