ये कैसी आह्ट,कैसी दस्तक है,
नींद से उठ-उठ कर देखती हूँ,
नींद से उठ-उठ कर देखती हूँ,
कौन है जो दूर से सदा दे रहा,
क्यों मुझे गाहे-बेगाहे परेशां कर रहा,
यूँ कुछ हमारे भीतर तमन्नायें जगा रहा,
मानों कितनी सदी से इबादत कर रहा,
दिल बेगाना हुआ,धड़कने भी बस में न रही,
कोई तो ईशारा करे,कोई तो नज़र आये,
कैसे करूँ दीदार तेरा,गुफ्तगू करूँ कैसे,
दूर से सदा देते,पास आ छूते सिहरा जाते,
तुम्हारी मौजूदगी भरमाती मुझे,आवारगी सताती मुझे,
हो तुम कोई हक़ीक़त या रूह का कोई फ़साना,
या हमारे अंतर की दबी-अधूरी तिश्नगी,
उम्र भर सताते रही ,हलक जलाते रही,
हिज्र कि हर शाम यूँ गुजारी तेरे बगैर हमने,
मानो ओस कि बूंदों से प्यास बुझाई हमने।
bahut sundar ,man kee bechainee ke sundar abhivyakti
ReplyDeleteye hamara antar man ki awaz hai ....bahut sundar
ReplyDeleteantar mei bhagwan base tum antar ko aabaad karo, upar se sab saje dhaje so drishti ka vistaar karo
ReplyDelete:) सुंदर एहसास !!
ReplyDeleteकौन है वो :) क्यों करता है ऐसा :)
हो तुम कोई हक़ीक़त या रूह का कोई फ़साना,
ReplyDeleteया हमारे अंतर की दबी-अधूरी तिश्नगी, kya kashmkash hai ..sundar abhivyakti..
सुंदर.........
ReplyDeleteअंतर्मन की अतृप्त भावनाएं..... . बहुत खूब।
ReplyDeleteBahut khoobsurat rachna
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को और सभी ब्लॉगर-मित्रों को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है
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ReplyDeleteबहुत सुंदर----
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
नववर्ष की हार्दिक अनंत शुभकामनाऐं----