सोचती ,महसूसती उसे,
हर वक़्त,हर जगह,
जो अपने होने का आभास दिलाता,
छू जाता,सिहरा जाता,
स्पर्श से वो अपनी मौजूदगी दर्ज कराता,
मुड़-मुड़ के देखती ,आँखे मलती,
चौंक कर सोचती ,ठिठकती,
जाने किन ख्यालों में खो जाती,
वो है कहाँ?
उसका सुकून,उसकी जूनून उसे कहाँ ले गई,
साथगीर है किसके ,मै छटपटा सी जाती,
तब फिर मै कौन,हूँ कहाँ?
सारे गुजरे लम्हें,देखे सपने,
पेश करते क्या सुबूत,
जो मेरे रूह को छू गया,
नाज़ुक पलों का राजदार रहा,
यादेँ जिसकी सबलता से मेरी,
हर बदअंदेशे को काफूर कर जाती है,
वो गर आ जाये तो क्या कहर ढाये,
हक़ीक़त मेरे सोच को हौले से सहला जाती है,
मेरे मर्म को छूती उसकी नदारगी है,
आँखे मूंद हर एहसास गटकती हूँ,
हद से बढ़ जाती परेशानियाँ है,
कहीं गर्दिश झेल रहा वो,
दुनिया के क्रूर हाथों से मसला जा रहा,
ख्याल आतें ,बिखरा से जातें मुझे,
गर्म हवा बहती,पास आ जलाती,
सर्द आहों से मिन्नतें कि थीं,
पानी बरसा,भिंगोकर जाने कहाँ बहके गया,
आँसुओं की बूंदों से गुजारिश की थी,
ठण्ड बढ़ी थी,कँपकँपा गई थी,
साँसों की गर्मी से जुंबिश दी थी,
क्या कोई तड़प,कोई सदा उसतक न पहुँची,
उसकी तमाम शरारतें,सुलगती हरकतें,
मोहक लफ्ज़ेबाज़ी याद आती है,
भरमा सी जाती है मुझे,
धड़कने,खामोश मुहब्बत की गवाही देती,
पर जेहन से निकल सवालात,वहीँ के वहीँ पसरे पड़े हैं,
आख़िरकार वो है कहाँ?????????
हर वक़्त,हर जगह,
जो अपने होने का आभास दिलाता,
छू जाता,सिहरा जाता,
स्पर्श से वो अपनी मौजूदगी दर्ज कराता,
मुड़-मुड़ के देखती ,आँखे मलती,
चौंक कर सोचती ,ठिठकती,
जाने किन ख्यालों में खो जाती,
वो है कहाँ?
उसका सुकून,उसकी जूनून उसे कहाँ ले गई,
साथगीर है किसके ,मै छटपटा सी जाती,
तब फिर मै कौन,हूँ कहाँ?
सारे गुजरे लम्हें,देखे सपने,
पेश करते क्या सुबूत,
जो मेरे रूह को छू गया,
नाज़ुक पलों का राजदार रहा,
यादेँ जिसकी सबलता से मेरी,
हर बदअंदेशे को काफूर कर जाती है,
वो गर आ जाये तो क्या कहर ढाये,
हक़ीक़त मेरे सोच को हौले से सहला जाती है,
मेरे मर्म को छूती उसकी नदारगी है,
आँखे मूंद हर एहसास गटकती हूँ,
हद से बढ़ जाती परेशानियाँ है,
कहीं गर्दिश झेल रहा वो,
दुनिया के क्रूर हाथों से मसला जा रहा,
ख्याल आतें ,बिखरा से जातें मुझे,
गर्म हवा बहती,पास आ जलाती,
सर्द आहों से मिन्नतें कि थीं,
पानी बरसा,भिंगोकर जाने कहाँ बहके गया,
आँसुओं की बूंदों से गुजारिश की थी,
ठण्ड बढ़ी थी,कँपकँपा गई थी,
साँसों की गर्मी से जुंबिश दी थी,
क्या कोई तड़प,कोई सदा उसतक न पहुँची,
उसकी तमाम शरारतें,सुलगती हरकतें,
मोहक लफ्ज़ेबाज़ी याद आती है,
भरमा सी जाती है मुझे,
धड़कने,खामोश मुहब्बत की गवाही देती,
पर जेहन से निकल सवालात,वहीँ के वहीँ पसरे पड़े हैं,
आख़िरकार वो है कहाँ?????????
wo yahin hai , aas-pas hi ... dhundhne ki deri hai ..
ReplyDeletebahut sundar
sahi bolin hamare sath hi to hai...
DeleteZaroori to nahin tujhe aankhon hi se dekhoon .. Kya tera tasawwur tere deedar se kam hai. Chirpi
ReplyDeleteaabhar..swagat..
DeleteEk ehsas jo rahta haiareeb hi ... Par bas mahsoos kiya ja sakta hai ...
ReplyDeleteGahre pal ki yaadon se buna ...
ji sahi aapne kaha..thnx..
Deletekhoobsurat ehsas ...
ReplyDeleteaabhar ji....
Deleteसिर्फ एहसास हैं रूह से महसूस करो ........
ReplyDeletesahi kaha sakhi...
Deleteआपकी प्रविष्टि् कल रविवार (16-02-2014) को "वही वो हैं वही हम हैं...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1525" पर भी रहेगी...!!!
ReplyDelete- धन्यवाद
shukriya ji....
DeleteWaah..bahut khunsurati se ehsaason ko bayaan kia hai aapne! Bahut achhi rachna
ReplyDeleteHai!
shukriya ji....
Deletejab dekho jidhar dekho vahee aalam vahee jalba, meri aankho mei rahta hai koi meeri nazar hokar.
ReplyDeletewah...kya bat..
Deleteउत्कृष्ट रचना
ReplyDeletedhanybad ji...
Deleteइन खूब्सूरत पलो का एह्सास बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और इस अनुभव को शब्द देना मुश्किल होता है - कह सक्ते है कि ज्यो गूंगह मीठे फल को रस अंतर्गत ही भावे - सही है। बहुत ही अच्छा वर्णन किया है। अभिनन्दन ।
ReplyDeletebahut sunder sushilguru ji
Deletebahut achhe...thnx
Deletebahut khoobsurat lekhan aapka Aparna mam ........... beautiful like u ........... muaaahhhhhhhhhhhh :)
ReplyDeleteshukriya ji....
Delete